विदाई की रागिनी: पारुल चौहान की सफलता की कहानी: विदाई की रागिनी यानी कि पारुल ने भी कभी अपने सांवले रंग की वजह से लोगों का खूब रिजेक्शन झेला था लेकिन बाद में यही सांवला रंग पारुल की सफलता की वजह भी बना था।
पारुल ने अपने करियर की शुरुआत मॉडलिंग से की और फिर कहीं तो होगा में रिसेप्शनिस्ट के रोल से कैमियो किया था।
उन दिनों वह मुंबई में हॉस्टल में रहकर गुजारा करती थी जहां एक वक्त का टिफिन मंगवा करर दो रोटी सुबह तो दो रोटी शाम को खाकर वह अपना गुजारा किया करती थी।
रंग की आलोचना
रंग एक व्यक्ति की व्यक्तित्व को दर्शाता है और उनकी व्यक्तिगतता को प्रकट करता है। यह न केवल उनके काम की पहचान बनाता है, बल्कि उनके संवेदनशीलता और आत्मविश्वास को भी प्रभावित करता है।
समाज में रंग के साथ जुड़ी रूढ़ियों और धारणाओं का भी असर होता है। विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों में रंग के अलग-अलग संबंध और महत्व होता है।
रंग का व्यक्ति के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव होता है। रंगों को देखने से मन को शांति और सुकून मिलता है, और यह संतुलनित हारमोनी को बढ़ावा देता है।
हर व्यक्ति के व्यक्तित्व के लिए उनके पसंदीदा रंग का महत्वपूर्ण होता है। रंगों की पसंद के आधार पर हम उनके स्वभाव और स्वाद के बारे में भी अनुमान लगा सकते हैं।
सीरियल में पारुल की उम्र का रोल
पारुल ने सीरियल “यह रिश्ता क्या कहलाता है” में अपनी उम्र से 4 साल छोटे हीरो की मां का रोल निभाया।
वह खुद से 4 साल छोटे हीरो की मां बनकर अपने अभिनय कौशल का परिचय दिया।
पारुल ने उम्र के बावजूद मां का रोल प्ले करने के लिए शो के निर्माताओं को अपने अभिनय में भरोसा दिखाया।
इस रोल ने पारुल को नए दर्शकों के दिलों में स्थान बनाया और उन्हें नया मुकाम दिया।
सफलता की वापसी
पारुल का सफलता से भरा सफर बड़े संघर्ष और विरोधों के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी।
उनका आत्मविश्वास और मेहनत ने उन्हें वापस उन्चाइयों तक पहुंचाया।
पारुल ने रिजेक्शन की बाधाओं का सामना किया और खुद को सफलता की राह पर ले जाने में कामयाब रहे।
उनकी कहानी से हम सीख सकते हैं कि सफलता के लिए संघर्ष करना और हार नहीं मानना जरूरी है।
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