सीएए का विरोध
देश में अभी तक सीएए का विरोध थमा नहीं है। राजनीतिक पार्टियों से लेकर गैर राजनीतिक संगठन भी इसका विरोध कर रहे हैं। जिन पार्टियों को इसके विरोध से फायदा होता है, वो ठीक है क्योंकि उनका ये वोट बैंक ही इसके इर्दगिर्द है। लेकिन कांग्रेस पार्टी के लिए सीएए का विरोध करना उनके गले की फांस बन चुका है। उनकी हड्डी बन चुका है जो ना निगली जा रही है और ना ही उगली जा रही है। बीजेपी इसे चुनावी मुद्दा बना रही है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इंडी गठबंधन के दल भी इसे चुनावी मुद्दा बनाने से पीछे नहीं हट रहे हैं। मतलब इसके विरोध में मतलब साफ है कि वोटों का ध्रुवीकरण होगा जो फायदा बीजेपी को देगा।
बंगाल और केरल में विरोध
सीएए का विरोध सबसे ज्यादा बंगाल में हो रहा है। जिसके बाद केरल में भी इसका पुरजोर विरोध चल रहा है। वही केरल जहां के संसदीय क्षेत्र वायनाड से राहुल गांधी अभी सांसद हैं। सीपीआईएम के नेतृत्व वाले वाम लोकतांत्रिक मोर्चा कानून के विरोध में पिछले सप्ताह से रात में मार्च लगातार निकाल रही है। इसके अलावा केंद्र सरकार का जमकर विरोध वो कर रहे हैं।
कांग्रेस की समस्या
कांग्रेस से अलग होकर, अब कांग्रेस के लिए समस्या यह है कि इसका विरोध करें या चुप रहें। अगर कांग्रेस विरोध करती है, तो हिंदू वोट बैंक का ध्रुवीकरण होगा और अगर चुप बैठती है, तो मुस्लिम वोट बैंक निकल जाएगा। ऐसे में राहुल गांधी के लिए असमंजस की बड़ी स्थिति है। वायनाड सीट पर उनके लिए खतरा साबित हो सकता है। केरल में वामपंथ का अच्छा वोट बैंक है। क्योंकि वहां पर वामपंथी सरकार है।
केरल सरकार का विरोध
केरल की वामपंथी सरकार ने सीए कानून के विरोध में सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया है। केरल सरकार ने सीएए नियमों का असंवैधानिक बताते हुए कहा कि धर्म और देश के आधार पर वर्गीकरण भेदभाव पूर्ण मनमाना अतार्किक और धर्म निरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
कांग्रेस और बीजेपी
बड़ी संख्या में रैली का आयोजन की भी वामपंथी सरकार ने योजना बनाई हुई है। यही नहीं, केरल सरकार एक कदम और आगे बढ़ाते हुए पिछले हफ्ते 2019 के सीएए विरोध प्रदर्शन में संबंधित सभी दर्ज मामले वापस लेने के अपने फैसले की उन्होंने ऐसी घोषणा की है।
जाहिर है कि ऐसे फैसलों से केरल सरकार का वोट बैंक बढ़ेगा। दूसरी ओर कांग्रेस को जोरदार नुकसान होगा। क्योंकि ये दोनों पार्टियां इंडी गठबंधन के दल हैं। ऐसे में वोटों के ध्रुवीकरण से फायदा तौर पर बीजेपी को ही होगा।
वायनाड सीट पर संकट
वायनाड सीट पर राहुल के लिए संकट के बादल मंडरा रहे हैं। वायनाड सीट पर वामपंथी दल ने राहुल के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। अपने प्रत्याशी की घोषणा कर दी है। सीपीआईएम अपने चुनाव अभियान में लगाता तार सीएए पर ठंडा रुख अपनाने के लिए कांग्रेस पर निशाना साध रही है। भले ही राहुल गांधी के लिए वायनाड सीट देश की सबसे सुरक्षित सीट मानी जाती हो, लेकिन राहुल गांधी के खिलाफ मोर्चा खोली हुई सीपीआई इस सीट को हर हाल में जीतना चाहती है।
कांग्रेस और बीजेपी का फर्क
केरल के सीएम पिराना विजयन कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने यह तक कह दिया कि सीएए के विरोध में कांग्रेस ने आवाज नहीं उठाई और सीपीआईएम अकेले लामबंद है। तो ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी में आखिर क्या फर्क रह गया। क्योंकि उन्होंने दिल्ली दंगों के समय भी अ वामपंथी सरकार ने पीड़ितों पीड़ितों के वह समर्थन में दिखी थी। यानी कि लगातार जो है वामपंथ सरकार राहुल गांधी और कांग्रेस के खिलाफ लामबंद हो हो रख है सीआई का विरोध भी एक तरफ चल रहा है लेकिन दूसरी ओर कांग्रेस को हराना राहुल गांधी को हराना एक बड़ा मकसद अ वामपंथी सरकार का पिराना विजयन का बन गया है।
राहुल गांधी की चुप्पी
ऐसे में वायनाड सीट पर राहुल गांधी के लिए मुश्किलें बढ़ सकती है। क्योंकि 2019 के बाद से 2024 तक उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र का लगभग कम ही दौरा किया है। और वह सीएए पर केरल में चुप भी है। उनकी चुप्पी उनके वोट बैंक को जाहिर तौर पर तोड़ सकती है। हालांकि राहुल गांधी ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी, लेकिन चुनाव में कहते हैं कि पावर जो है व इटरनल नहीं है। यह पावर कहीं भी खिसक सकती है। जिसका फायदा सीपीआईएम को मिल सकता है और सीपीआईएम के फायदे मिलने से सीधा जो नुकसान होगा वह कांग्रेस को होगा।
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