केंद्र सरकार ने गुरुवार को संसद में वक्फ बोर्ड एक्ट में संशोधन से जुड़ा विधेयक पेश किया। अखिलेश यादव, केसी वेणुगोपाल और असदुद्दीन ओवैसी समेत तमाम विपक्षी दलों ने इस विधेयक का विरोध किया और सरकार की मंशा पर सवाल उठाए। जेडीयू और टीडीपी ने इसका समर्थन किया।
विधेयक की व्याख्या करते हुए संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने तिरुचिरापल्ली के तिरुचेंथुरई गांव की कहानी सुनाई। हिंदू आबादी वाले 1500 साल पुराने इस गांव को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया था। जब ग्रामीणों को इसकी जानकारी हुई तो वे हैरान रह गए। वे समझ नहीं पा रहे थे कि उनकी हजारों साल पुरानी पुश्तैनी संपत्ति वक्फ संपत्ति कैसे हो गई। वक्फ बोर्ड के पास जमीन से जुड़ा कोई सबूत नहीं था, लेकिन गांव पर उसका मालिकाना हक था।
तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली के तिरुचेंथुरई गांव का मामला सबसे पहले 2022 में सुर्खियों में आया था. कावेरी नदी के किनारे बसे तिरुचेंथुरई गांव के रहने वाले राजगोपाल ने अपनी बेटी की शादी के लिए 1.2 एकड़ जमीन बेचने का फैसला किया. जब वह सब-रजिस्ट्रार के दफ्तर पहुंचे तो उन्हें जमीन बेचने के लिए वक्फ बोर्ड से एनओसी लेने की सलाह दी गई.
उन्हें बताया गया कि गांव की जमीन वक्फ बोर्ड की है, इसलिए एनओसी लेना जरूरी है. बिना एनओसी के वह जमीन नहीं बेच पाएंगे. इस राज का खुलासा होते ही हंगामा मच गया. ग्रामीणों ने इसकी शिकायत डीएम से की और बताया कि उनके गांव का इतिहास 1500 साल से भी ज्यादा पुराना है, इसलिए यह वक्फ की संपत्ति नहीं हो सकती. हिंदू बहुल इस गांव में मुस्लिम आबादी का कोई इतिहास नहीं है. वक्फ बोर्ड के पास इस बात का रिकॉर्ड नहीं था कि जमीन किसने दान की है.
विवाद बढ़ने पर वक्फ बोर्ड ने दलील दी कि रानी मंगम्मल के अलावा कई स्थानीय राजाओं ने तिरुचेंथुरई की जमीन वक्फ बोर्ड को उपहार में दी थी। वक्फ बोर्ड ने 220 पन्नों का दस्तावेज भी तैयार किया। मामला पेचीदा हुआ तो जिला प्रशासन ने जांच शुरू की। गांव के 1500 साल पुराने मणेंडियावल्ली सहिता चंद्रशेखर स्वामी मंदिर में एक शिलालेख मिला। मंदिर की दीवारों पर लिखा था कि गांव की कई एकड़ जमीन मंदिर की है। इसके बाद ग्रामीणों का दावा मजबूत हो गया। गांव की जमीन वक्फ बोर्ड के खाते में कब और कैसे पहुंची, इसका कोई सबूत नहीं है। यह मामला सुर्खियों में आया तो वक्फ बोर्ड एक्ट में संशोधन की मांग उठी।