अमेरिका और चीन के बीच चल रहे टैरिफ वॉर में अब चीन ने बड़ी चाल चली है। चीन ने डिस्प्रोसियम और नियोडिमियम जैसे दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के निर्यात पर रोक लगा दी है। इनका इस्तेमाल हाईटेक उपकरण, इलेक्ट्रिक वाहन, मिसाइल और पवन टर्बाइन बनाने में होता है।
चीन का यह फैसला अमेरिकी तकनीक और रक्षा उद्योग के लिए बड़ा झटका है, क्योंकि इन तत्वों की वैश्विक आपूर्ति में चीन की 90 फीसदी हिस्सेदारी है। इतना ही नहीं दुर्लभ धातुओं को परिष्कृत करने की क्षमता भी सबसे ज्यादा चीन के पास है।
भारत समेत कई देशों के पास दुर्लभ धातुओं के भंडार हैं, लेकिन प्रसंस्करण क्षमता की कमी के कारण वे काफी हद तक चीन पर निर्भर हैं। चीन ने समैरियम, गैडोलीनियम, टेरबियम, डिस्प्रोसियम, ल्यूटेटियम, स्कैंडियम और यट्रियम जैसी सात महत्वपूर्ण धातुओं को निर्यात नियंत्रण सूची में डाल दिया है।
चीन ने इन धातुओं पर दो अप्रैल से निर्यात प्रतिबंध लगा दिया है इनका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक मोटर, ड्रोन-मिसाइल, जेट इंजन-लेजर, कंप्यूटर चिप-स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहन और सैटेलाइट जैसी हाईटेक मशीनों के निर्माण में होता है। डिस्प्रोसियम, टर्बियम, यिट्रियम का इस्तेमाल मैग्नेट बनाने में होता है, जो अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक और सैन्य उपकरणों के जरूरी कंपोनेंट के तौर पर इस्तेमाल होते हैं।
चीन द्वारा रेयर अर्थ एलिमेंट्स के निर्यात पर प्रतिबंध का सबसे ज्यादा असर लॉकहीड मार्टिन, टेस्ला और एप्पल जैसी अमेरिकी कंपनियों पर पड़ेगा। अमेरिका के पास कुछ दुर्लभ धातुओं का भंडार जरूर है, लेकिन यह लंबे समय तक कंपनियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी नहीं है।