इन दिनों वक्फ कानून को लेकर देशभर में चर्चाएं तेज़ हैं। अब यह मामला सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है, जिसकी अगली सुनवाई 5 मई को होनी है। ऐसे में सबकी निगाहें अदालत के फैसले पर टिकी हैं।
क्या है पूरा मामला?
17 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून को लेकर एक लंबी सुनवाई हुई थी, जिसमें दोनों पक्षों ने अपने-अपने तर्क रखे। इस सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है, जिसे 5 मई को सुनाया जा सकता है।
सड़क से संसद तक विरोध
वक्फ बिल को लेकर कई मुस्लिम संगठनों और नेताओं ने ज़ोरदार विरोध दर्ज कराया है। उनका कहना है कि: वक्फ बोर्ड की बनावट में बदलाव किया गया है, संपत्ति के अधिकारों को लेकर स्थिति अस्पष्ट है, न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित किया गया है. इन सब वजहों से धार्मिक स्वतंत्रता पर असर पड़ने का डर जताया जा रहा है।
सरकार का पक्ष क्या है?
सरकार का कहना है कि वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए ये बदलाव ज़रूरी हैं। सरकार यह भी मानती है कि इससे भ्रष्टाचार और विवाद पर अंकुश लगेगा। लेकिन विपक्ष का कहना है कि यह कदम अल्पसंख्यकों की धार्मिक आज़ादी पर चोट है।
अब सरकार करेगी सभी नियुक्तियां
पुराने कानून (वक्फ अधिनियम, 1995) के अनुसार, वक्फ बोर्ड और सेंट्रल वक्फ काउंसिल में चुने गए और नामित मुस्लिम सदस्य ही होते थे। अब नए प्रस्ताव में सभी सदस्यों की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाएगी, जिससे समुदाय के प्रतिनिधित्व पर सवाल उठे हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हो रहा विरोध
भारत में ही नहीं, पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी वक्फ बिल का विरोध हो रहा है। बांग्लादेश की जमात-ए-इस्लामी और इस्लामी छात्र शिबिर जैसे संगठनों ने इस पर बयान जारी कर आपत्ति जताई है।
मुस्लिम पक्ष के ये 5 वकील रखेंगे अपना पक्ष
इस मामले में मुस्लिम पक्ष की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पांच बड़े वकील अपनी दलीलें पेश करेंगे:
- कपिल सिब्बल
- अभिषेक मनु सिंघवी
- राजीव धवन
- सलमान खुर्शीद
- हुजैफा अहमदी
नज़र रहेगी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर
अब सबकी निगाहें 5 मई की सुनवाई पर हैं, जब कोर्ट यह तय करेगा कि वक्फ कानून में किए गए बदलाव संविधान के अनुरूप हैं या नहीं। यह फैसला न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया भर में रहने वाले मुसलमानों के लिए मायने रखता है।