चाँद और सूरज पर तो पहुंच भारत, अब कहां पर जाएगा ISRO? जानिए प्लान…

चंद्रयान 3 के बाद भारत का सूर्य मिशन आदित्य-एल1 लॉन्च किया गया है. इसरो ने रविवार (3 सितंबर) को कहा कि आदित्य एल1 उपग्रह ठीक है और सामान्य रूप से काम कर रहा है। एजेंसी ने कहा कि ‘आदित्य एल1’ की पृथ्वी की कक्षा से जुड़ी पहली प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी हो गई है. इस सफलता के बाद इसरो कई और परियोजनाओं को अंजाम देने जा रहा है।
चंद्रयान 3 का उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में पानी की खोज करना है। ईंधन की तलाश करेंगे. चंद्रमा पर मौजूद रसायन. वहां की मिट्टी और चट्टानों पर शोध करेंगे। तो क्या इतनी रकम से चांद पर रिसर्च पूरी हो जाएगी? क्या इतनी रकम से इंसान चांद पर बस्तियां बसा पाएगा? जवाब न है।
इसके लिए चंद्रमा पर और लंबे शोध की जरूरत है और इसके लिए इसरो फिलहाल कम से कम एक और मिशन लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है, लेकिन इस बार भारत इस मिशन को अकेले नहीं कर रहा है, बल्कि इस बार वह भारत का समर्थन जापान कर रहा है।
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इसरो JAXA के साथ मिलकर चांद पर मिशन भेजेगा
जापान की अंतरिक्ष एजेंसी (JAXA) और भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो मिलकर साल 2024-25 में चंद्रमा पर एक और मिशन की योजना बना रही हैं, जिसका नाम LUPEX यानी लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन है। इसका उद्देश्य स्थायी रूप से ढके हुए चंद्रमा के ध्रुवों के बारे में जानकारी प्राप्त करना है। यह मिशन चंद्रयान 2 और चंद्रयान 3 से भी ज्यादा कठिन होने वाला है।
इसरो चांद पर स्टेशन बनाना चाहता है
इसके अलावा इस मिशन की सबसे बड़ी चुनौती ये है कि इस मिशन के जरिए हमें चांद पर ऐसी जगह ढूंढनी है जहां स्टेशन बनाया जा सके. वर्तमान समय में अंतरिक्ष में केवल एक ही स्टेशन है और वह है अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन। भारत भी चंद्रमा पर ऐसा ही स्टेशन बनाना चाहता है, ताकि इंसानों को भी वहां रहने की सुविधा मिल सके। ऐसे में इसके लिए सबसे अहम है चांद पर जगह ढूंढना और ये भारत का अगला मिशन होने वाला है, जिसमें जापान भी मदद कर रहा है. जापान मिशन के लिए प्रक्षेपण यान और रोवर उपलब्ध कराएगा, जबकि इसका लैंडर भारत का इसरो बनाएगा।
चांद से वापस लौटेगा अंतरिक्ष यान
भारत जो भी सैटेलाइट लॉन्च करता है वो वापस नहीं आता. सैटेलाइट जाते हैं, अपना काम करते हैं और फिर अंतरिक्ष में दफन हो जाते हैं, लेकिन अब भारत की कोशिश है कि वह जो भी सैटेलाइट लॉन्च करेगा वह धरती पर वापस भी आ सके. चंद्रयान 1 के मिशन निदेशक रहे एम अन्नादुरई ने कहा कि अगर चंद्रयान 2 की सॉफ्ट लैंडिंग होती तो चंद्रयान 3 का मकसद रिटर्न मिशन होता. चंद्रयान-3 पृथ्वी पर नहीं लौटेगा. सभी लैंडर और रोवर चंद्रमा पर ही रहेंगे, लेकिन अगर चंद्रयान 2 ने ये काम किया होता तो भारत चंद्रयान 3 को चंद्रमा पर भेजता और वापस भी बुला लेता.
हालांकि, अब इसरो विमान भेजने और वापस लाने के लिए अपने अगले मिशन की योजना बना रहा है। इसके लिए इसरो को एक ऐसे अंतरिक्ष यान की जरूरत है जो न केवल चंद्रमा पर जाकर सॉफ्ट लैंडिंग कर सके बल्कि चंद्रमा से वापस आकर पृथ्वी पर सॉफ्ट लैंडिंग भी कर सके।
चीन का चांग ई-5 सैटेलाइट वापस धरती पर आया
गौरतलब है कि चीन ने ऐसा ही एक मिशन साल 2020 में भेजा है। चीन ने 23 नवंबर 2020 को चांग ई-5 नाम से सैटेलाइट लॉन्च किया था। वह सैटेलाइट 1 दिसंबर 2020 को चंद्रमा की सतह पर पहुंचा और फिर 16 दिसंबर 2020 को चीन का अंतरिक्ष यान भी पृथ्वी पर लौट आया। अब भारत भी कुछ ऐसी ही योजना बना रहा है, ताकि वह चंद्रमा के बारे में अधिक जानकारी जुटा सके।
शुक्र ग्रह पर अंतरिक्ष यान भेजने की तैयारी
इसके अलावा इसरो शुक्र ग्रह पर जाने की भी योजना बना रहा है। इसरो प्रमुख सोमनाथ ने पिछले साल अहमदाबाद से घोषणा की थी कि इसरो शुक्र ग्रह पर जाने के लिए तैयार है। इसके लिए पैसे का इंतजाम भी कर लिया गया है और अगले कुछ सालों में इसरो इस मिशन को लॉन्च कर सकता है. शुक्र एकमात्र ऐसा ग्रह है जो पृथ्वी जैसा माना जाता है। यहां इंसान भी रह सकते हैं. हालाँकि, 1960 के दशक में यह स्पष्ट हो गया कि किसी भी अंतरिक्ष यान के लिए शुक्र तक पहुँचना और वहाँ सुरक्षित रूप से जीवित रहना बहुत कठिन था।
शुक्र ग्रह पर गर्मी और दबाव बहुत अधिक है, जिसके कारण अंतरिक्ष यान पूरी तरह से टूट जाता है। 30 अक्टूबर 1981 को सोवियत संघ ने वेनेरा 13 अंतरिक्ष यान शुक्र ग्रह पर भेजा, जो चार महीने और दो दिन की यात्रा के बाद शुक्र की सतह पर पहुँचते ही मात्र 2 घंटे के भीतर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। अब भारत शुक्र ग्रह पर अंतरिक्ष यान भेजने की योजना बना रहा है।
अंतरिक्ष यान में इंसान भेजने की तैयारी
इसके अलावा इसरो अपने गगनयान प्रोजेक्ट में इंसानों के साथ करीब 400 किमी की दूरी तक अंतरिक्ष यान भेजने और फिर उन्हें वापस हिंद महासागर में उतारने की योजना बना रहा है। इसके लिए इसरो ने तैयारी भी शुरू कर दी है. तीन दिन के अंदर धरती से करीब 400 किलोमीटर की दूरी तय करने वाले चंद्रयान 3 की सफल लैंडिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले एलवीएम 3 यानी लॉन्च व्हीकल मार्क 3 रॉकेट को संशोधित कर एचएलवीएम यानी ह्यूमन रेटेड लॉन्च व्हीकल मार्क 3 बनाया जा रहा है। वापस भी आ सकते हैं. इसमें क्रू स्केप सिस्टम लगाने पर भी काम किया जा रहा है, ताकि किसी भी अनहोनी की स्थिति में अंतरिक्ष यान में बैठे इंसानों को बचाया जा सके।
यात्री इंटरनेशनल स्पेस सेंटर जाएंगे
इस मिशन के लिए तैयार हो रहे अंतरिक्ष यात्रियों को गगनयान की यात्रा से पहले कुछ दिनों के लिए अंतरिक्ष में बने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र भी भेजा जाएगा। उम्मीद है कि अगले साल तक ये यात्री अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र जाएंगे. कुछ महीने पहले ही अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने मिलकर इसके लिए एक योजना तैयार की है और अगर यह योजना सफल रही तो यह पिछले 40 सालों में पहली बार होगा जब कोई भारतीय यात्री अंतरिक्ष में जाएगा. . हालांकि, अब अंतरिक्ष में जाने के लिए इसरो नहीं बल्कि नासा के अंतरिक्ष यान का ही इस्तेमाल किया जाएगा।