भारतीय रेलवे का इतिहास देश की आजादी से भी पहले का है। देश में पहली ट्रेन 171 साल पहले चली थी। देश में पहली ट्रेन अंग्रेजों ने अपनी सुविधा के लिए चलाई थी। अंग्रेजों ने अपनी सुविधा के लिए भारत में ट्रेनें चलाईं।
इसके नियम भी अंग्रेजों ने ही बनाए थे, लेकिन आजादी के बाद भारत सरकार ने रेलवे को अपने नियंत्रण में ले लिया। साल 1951 में रेलवे का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया, लेकिन आज भी कुछ नियम ऐसे हैं जो अंग्रेजों के जमाने से लेकर अब तक लागू हैं।
भारतीय रेलवे आज भी अंग्रेजों के बनाए कुछ नियमों का पालन कर रहा है। ऐसी ही एक परंपरा है भारतीय रेलवे की ट्रेनों को जंजीरों से ट्रैक से बांधना।
अंग्रेजों के जमाने से ही ट्रेनों की बोगियों के पहियों को जंजीरों से बांधकर रखा जाता था। भारतीय रेलवे बुलेट ट्रेन चलाने की ओर बढ़ रहा है, लेकिन अब भी अंग्रेजों के जमाने के कुछ नियमों का पालन किया जा रहा है।
ऐसा ही एक नियम इटावा रेलवे स्टेशन, सराय भूपत स्टेशन, भरथना जैसे स्टेशनों पर चल रहा है। अंग्रेजों के जमाने से ही ट्रेनों के पहियों को जंजीरों से बांधा जाता रहा है। यह नियम आज भी कायम है।
ट्रेन चालक और हेल्पर अपनी ड्यूटी खत्म करके ट्रेन को लूप लाइन पर खड़ी कर देते हैं, जिसके बाद बोगी के पहियों को जंजीरों से बांध दिया जाता है। रेलवे कर्मचारियों के मुताबिक यह तरीका काफी पुराना है। सालों बीत जाने के बाद भी पहियों को जंजीरों से बांधने की व्यवस्था कायम है।
इटावा के सराय भूपत रेलवे स्टेशन के स्टेशन अधीक्षक एनएस यादव ने मीडिया रिपोर्ट में बताया कि सुरक्षा कारणों से ट्रेन की पटरियों और पहियों को जंजीरों से बांधा जाता है। इसके पीछे कई कारण हैं। कई लोगों का मानना है कि ट्रेन को जंजीरों से इसलिए बांधा जाता है ताकि ढलान के कारण ट्रेन अपने आप चलने न लगे।