आज के समय में हर कोई बैंक लगातार अपनी शक्तियों को बढ़ाने में लगा हुआ है ऐसा इसलिए है ताकि फेक अकाउंट के माध्यम से साइबर क्राइम पर लगाम लगाने में मदद मिल सके और अवैध ट्रांजैक्शन से लिफ्ट खातों को जप्त किया जा सके बैंकों का तो यह भी कहना है कि ऐसे मामलों में अधिकारियों से ऑर्डर मिलने में काफी ज्यादा और कीमती समय भी खराब हो जाता है लेकिन अब इन सभी मामलों में तेजी से कदम उठाना भी जरूरी हो चुका है यहां बताते चले कि बैंक कुछ खास कारण के आधार पर खातों को जप्त करते हैं. धन शोधन रोधी अधिनियम के अनुसार बैंकों के पास अदालत या कानून परवर्तन एजेंसी से मंजूरी लिए बिना ही ग्राहकों के खातों को जप्त करने का अधिकार नहीं है चाहे फिर वह साइबर क्राइम में ही लिप्त क्यों ना हो.
अब इंडियन बैंक असोसिएशन ने एक वर्किंग ग्रुप में अपनी रिपोर्ट जारी की है और कहां है कि इस मुद्दे को ध्यान में रखते हुए हम भारतीय रिजर्व बैंक को सलाह दे सकते हैं कि वह आगे इस पर विचार करें यह बताते चले कि साइबर फ्रॉड बैंकिंग सिस्टम के माध्यम से ही अवैध रूप से पैसों की हेरा फेरी करने के लिए इन सभी फेक अकाउंट का इस्तेमाल किया करते हैं बैंक का हर एक साल ऐसे हजारों अकाउंट को जप्त करते हैं लेकिन यह साइबर फ्रॉड बैंकिंग सिस्टम में कमजोरी का फायदा उठाकर जल्द ही नए अकाउंट भी खोल लेते हैं.
दूसरी तरफ बैंकों ने इन सभी के साथ पैन कार्ड नंबर नहीं होने की स्थिति में मतदाता पहचान पत्र या फिर फॉर्म 60 का इस्तेमाल करके खाता खोलने वाले लोगों के वेरिफिकेशन के लिए इलेक्शन कमीशन का डाटा का इस्तेमाल करने और ऐसे अकाउंट पर होने वाले ट्रांजैक्शन की संख्या की लिमिट तय करने का भी प्रस्ताव किया है रिपोर्ट में तो यह भी सुझाव दिया गया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग को ट्रांजैक्शन मॉनिटरिंग सिस्टम से जोड़ा जा सकता है वर्किंग ग्रुप का कहना है कि टेक्नोलॉजी में इन्वेस्टमेंट स्टाफ की ट्रेनिंग और स्टॉक होल्डर के बीच सहयोग से फाइनेंस सेक्टर और भी ज्यादा सुरक्षित हो सकता है.